Wednesday, February 24, 2010

Sudhir's poem

पैदा होते ही मिल गया कई ख्वाइशो का तोहफा
जो खुद न बन पाया वोह मुझमे देखा होगा
कुछ ने मेरे होने को खुदा का करम बताया होगा
खानदान का चिराग बता मंदिर मैं दिया जलाया होगा
इस तरह से जो शुरू हूई मेरी ज़िन्दगी
की तुलना और समरूपता पे ख़तम हुई
पहला कदम जो मैं अनजाने से ज़मीन पे रखा
क्या पता था की अब यह रुकने का नाम न लेगा
अभी तक तो माँ की छाती से लिपट के सो भी न पाया था
की स्कूल के बस्ते ने मेरी पीठ पे लटक कर साथी बना लिया
अब तो खिलोनो की जगह कॉपी और किताबो ने ले ली
सपनों मैं मुझे परियों नहीं आसूं ने सुलाया होगा !
हर सुबह बसते की पीठ पर टांग स्कूल को निकलता
और शाम तलक अपनी किताबो से ही बाते करता
मेरी कॉपी -किताबे ही अब मेरे दोस्त होगये थे
कभी फाड़ कर उन्ही को जहाज उड़ाया करता!
मेरे माँ बाप की ख्वैशे अब बेमिशाल हो गई
घर मैं अब तो कई सारी डिगरिया सुमार हो गई
ख़तम पदाई होई तो लगा की अब कुछ तो सकूं आएगा
मगर यह क्या अब तो नौकरी की तलाश शुरू होगई
नौकरी और घर के बीच कुछ इस तरह ज़िन्दगी निकली
अब तो खुद से ही मुलाकात पुरानी होगई.
भूल ही चूका हूँ अपने आस्क की आहात को मैं
अब तो ज़िन्दगी भी जो थी अपनी बेगानी होगई

Thursday, February 11, 2010

 

Hibiscus rosa .
Posted by Picasa

A pond admist the clouds

 
While flying to delhi from Lucknow, I saw the expanse of clounds like new cotton on the horizon and then I saw this depression in the cloud field.
Took out my Sony D300 and took this shot, its worked on a bit with picasa to highlight the shadows and warmify the color tone,
Posted by Picasa