अब चिड़िया कहां बैठेगी अगर हम ये ताड़ लेते हैं तो इसका क्या अर्थ समझा जायेगा ? ये तो बिलकुल ही नही की चिड़िया जहां बैठेगी वहां उसको मार पड़ेगी ?
लेकिन तुलसी दास की चौपाई में कुटिल लोग सालों से ताड़ना को समझना, जानना, प्रवत्ति के अनुसार किसी के आगामी कार्य के बारे में अनुमान लगाना जैसे अर्थों के सिवा सारे अर्थ देकर जैसे समूच सनातनी समाज को कलंकित करते आ रहे हैं।
हिंदी, अवधी की कविता को समझने के लिए न सिर्फ भाषा का ज्ञान अपितु काव्य, विभिन्न अलंकार और पर्ययवाचियों का पर्याप्त ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है जो की व्यस्कों के लिए व्यस्कों द्वारा बनाई गई चित्रकथा को देख के ज्ञानार्जन करने वाले बुद्धिवादी न समझ पाएंगे ।
उदाहरण के लिए
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
एक खाय बौराय है, एक पाए बौराय।।
इस काव्य खंड में कनक शब्द दो बार प्रयुक्त है दो अलग अर्थों के साथ, एक बार अर्थ स्वर्ण हैं और एक बार धतूरे से संबंधित है , और इस कारण इस काव्य खंड का अर्थ होता है
सोने और धतूरे के आपसी मादकता में सौ गुना फर्क है , एक को खाने से व्यक्ति पागल होता है जबकि दूसरे को तो पाते ही हो जाता है ।
इस प्रकार तुलसी दास द्वारा रचित चौपाई में ताड़ना का अर्थ उपयोग और विषय के अनुरूप ही समझा जा सकता है ।
ढोर, गवार, शूद्र, पशु , नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी ।।
इस चौपाई में ढोल को थाप, अज्ञानी के मंशय को स्थिति के अनुसार समझना, श्रमिक और भार धोने वाले को उसकी कार्य क्षमता के अनुसार कार्य देने, जंगली आवारा पशु को दंड से नियंत्रण में करने और नारी के मन की बात को समझने के लिए शब्दो के बजाय भावों को समझने से हैं ।
लेकिन कान के ऊपर बीड़ी खोंस के रखने और बिना धुले खादी कपड़े पहनने मात्र से बुद्धिवादी बने बार बार एम ए करने वाले कम्युनिस्टों को ताड़ पाना हमारी समझ से परे हैं, तो हम तो चिड़िया कहां बैठेगी यही ताड़ के खुश हैं ।
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