Friday, December 27, 2024

तुम्हारे हमारे

कुछ निशान है तुम्हारे , कुछ निशान है हमारे
टूटे हुए वादे, भूली हुई कसमें और सालों की दूरी 
आसमानों की फटी हुई चादर में सूखते सपने
रात की कढ़ाई में शोर मचाते भूले हुए अहसास 
डूबते उतरते जलते भुनते कहीं कच्चे कहीं पके
जिंदगी के उबलते तेल की तपन में दम तोड़ते
ताकते राहत की कड़छी की तरफ उम्मीद से
पर रुके से हाथ है कुछ तुम्हारे कुछ हमारे ।।

Saturday, May 18, 2024

आस की आस

एक आस के पूरी होने की आस,
और इस आस में जीने की आस
हर पल मन को भटकाती आस
न थमती न थमने देती आस 

उजले सपनों को भोर की आस
गिरती बूंदों को मेघ की आस
नन्हे कदमों को दौड़ की आस
थमती सांसों को और की आस

उजड़े आंगन को चूल्हे की आस
नन्हे तिनको को ओस की आस
जीवन को नित कल देती आस
यूं जीवन को जीवन देती आस ।।