टूटे हुए वादे, भूली हुई कसमें और सालों की दूरी
आसमानों की फटी हुई चादर में सूखते सपने
रात की कढ़ाई में शोर मचाते भूले हुए अहसास
डूबते उतरते जलते भुनते कहीं कच्चे कहीं पके
जिंदगी के उबलते तेल की तपन में दम तोड़ते
ताकते राहत की कड़छी की तरफ उम्मीद से
पर रुके से हाथ है कुछ तुम्हारे कुछ हमारे ।।