Showing posts with label hindu hindurashtra hindustan. Show all posts
Showing posts with label hindu hindurashtra hindustan. Show all posts

Friday, December 14, 2018

हिन्दू , हिंदुत्व और राष्ट्र - कुछ जलते प्रश्न ।


दिन 12 जून 1975,


इलाहाबाद हाई कोर्ट इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनाव के दौरान हुई धांधलियों के कारण अवैध घोषित कर देती है,श्रीमती गांधी अपने पद से इस्तीफा देने की जगह देश में इमरजेंसी लगा कर सारे विपक्ष और विरोधी दलों के दमन में जुट जाती हैं।

इसी भयानक समय में इंदिरा संविधान की भूमिका में सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष शब्द डाल देती है, ताकि देश के विभाजन के बाद से उहापोह की इस्थिति में रह रहे मुस्लिम समाज को हिन्दू राष्ट्र के संभावित भय से मुक्ति दिला के भविष्य में चुनावी जीत पक्की की जा सके ।




भारत के विभाजन से थोड़ा पहले के इतिहास को खंगालने पे एक ध्यान देने की बात मिलती है कि 1947 जून में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कानून "इंडिपेंडेंस ऑफ इंडिया एक्ट" जिसकी कानूनी वैद्यता के अंतर्गत ही हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान , इन दो देशों को बनाने की पहल हुई थी , वो कानून भी भारत को हिंदुओं की स्वतंत्र शाशन की मंशा के रूप में परिभाषित करता है ।

यानी कि हिंदुओं का स्वतंत्र राष्ट्र  (* आधार - इंडिपेंडेंस ऑफ इंडिया एक्ट की प्रति),  साथ ही ये भी बात गौर करने योग्य है कि डॉ अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने संविधान निर्माण के दौरान दो बार संविधान में "सेक्युलर" शब्द डालने के प्रयास को सिरे से खारिज कर दिया था ।

स्वयं डॉ अंबेडकर का कहना था कि राष्ट्र का स्वरूप क्या हो , वो सेक्युलर हो या सोशलिस्ट ये तो जनता निर्धारित करेगी न कि संविधान । लेकिन परिवारवाद की कृपा से राजनीति में आई इंदिरा नें, ना सिर्फ देश को इमरजेंसी के चाबुक से घायल किया बल्कि सम्पूर्ण संविधान सभा और उसमें शामिल सभी सदस्यों के निर्णय को दरकिनार करते हुए निहित स्वार्थों की सिद्धि हेतु कानूनी रूप से निर्मित (हिन्दू) राष्ट्र को दुबारा से 1946 वाली स्तिथियों में झोंक दिया ।

जब जिन्ना ने ये कहते हुए मुस्लिम राष्ट्र की मांग की थी कि हिंदुओं के बीच में मुसलमानों का अस्तित्व और उनकी संस्कृति खत्म हो जाएगी, अतः द्वि राष्ट्र सिद्धान्त की मांग को हवा दी, मुसलमानो के लिए पाकिस्तान और बाकी बचा हिंदुओं का हिंदुस्तान (इस समय तक सिख, जैन, बौद्ध इत्यादि भारतीय मूल के धर्म और परंपराएं हिन्दू परम्पराओं में समाहित ही मानी जाती थीं) ।

आज 1946 के बाद मुस्लिम समाज एक सम्पूर्ण मुस्लिम राष्ट्र की मांग करके उसे पाने के बाद भी भारत में एक बार फिर AIMIM जैसे संगठनों के बैनर तले इकट्ठा हो रहा है, जिसका एक मात्र मकसद मुसलमानों का विकास और सिर्फ मुसलमानो के इत्तिहाद के लिए काम करना है, वहीं दूसरी ओर आज भी हिन्दू सदियों पहले तोड़ दिए गए राम मंदिर को बना पाने की भीख मांगते नज़र आते हैं उस देश में जो कानूनन हिन्दू राष्ट्र बनना था ।

अब आते हैं कुछ कड़वे प्रश्नों पे -

क्या हमको ये प्रश्न नही पूछने चाहिए कि एक ऐसे राजनीतिज्ञ को, जिसके चुनाव को स्वयं हाई कोर्ट ने अवैद्य करार दिया हो, क्या अधिकार था कि 80 करोड़ की जनता के भविष्य और पूरे राष्ट्र के चरित्र के साथ खिलवाड़ कर बैठे ?

 क्या हमको ये प्रश्न नही पूछने चाहिए कि उसके बाद आई सरकारों की ये जिम्मेदारी नही थी कि ऐसे असंवैधानिक कार्यों को निरस्त कर दें ?

 आखरी प्रश्न क्या भारत की जनता सेक्युलर शब्द का मतलब भी जानती थी जब विदेश में पढ़ी इंदिरा ने सेक्युलर शब्द से हमारे अधिकार रातों रात हर लिए ? जिस देश में सुबह राम राम से और शाम हरि बोल से हो, और तो और राकेट भी छोड़ने के पहले हम नारियल फोड़ते हैं, तो हम धर्म विहीन, धर्म निर्पेक्ष कैसे और क्यों हो गए ?

 मैं पूरे यकीन से कह सकता हूँ कि जनता नें तो ये कभी न चाहा था, तो ये कैसा लोक तंत्र है और ये कैसे नेता हैं जो जनता के द्वारा चुने जाने पर भी जन मन की न करके कुछ और ही करते आएं हैं ?

याद रखने की बात है कि सेक्युलर शब्द न सिर्फ हिन्दू समाज के अधिकारों का हनन है, बल्कि ये घटना जनतंत्र के मुख पे एक कालिख की तरह है कि एक अयोग्य करार दी जा चुकी नेता सम्पूर्ण राष्ट्र को अपनी बपौती की तरह इस्तेमाल करे और राष्ट्र के चरित्र को अपनी मर्जी से परिभाषित कर दे ।

 क्या किसी राजनीतिक पार्टी में ये इच्छा शक्ति नहीं है की भारत की मौलिक संस्कृति को भारत के संविधान की गरिमा बना पाए ? क्या हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति अपनी पहचान की भीख मांगने को मजबूर रहेगी ?

 इन सवालों के जवाब आज नही होंगे तो कल हिन्दू समाज और हिन्दू संस्कृति भी नही होगी, जाती और वर्ण की तो कोई पूछ ही नही । _/|\_