निसर्ग अधरों पे मेरे,
निसर्ग स्वर का परिवर्तन,
आमंत्रण है तुम्हे प्रिए,
नित प्रेम प्रकाश करूं अर्पण।
कहीं कूक पपिहा दे रहा,
विरह का अपनी अभिवेदन,
मुझ निश्चल की सांसे अविरत,
मांगे तुमसे अविरल जीवन।
श्याम घटा के विलयों में,
केशों का तुम्हारे परिचित्रण,
नभ की नीरव खामोशी सा,
तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन ।
विस्तृत तुरंग तरंग सदा,
तुमसे पुलकित सारा जीवन,
इस लोक में तुमसे प्रेम बनें,
अतुलित महिमा का दिग्दर्शन ।
सुबोध