ऐसे सन्नाटे रोज कुछ बोल के जाते हैं
तेरे होने के एहसासों को भिगो के जाते हैं।
क्यों तन्हाई का सिरा है जिंदगी का दौर
जब दिन और रात तेरे नाम से आते हैं ।।
ऐसे सन्नाटे रोज कुछ बोल के जाते हैं
पास तेरे तेरा कोई अपना कहने को है
मेरे खाली कमरे के किनारे पड़े कपड़े
वापस मेरे आने की बस आस लगाते हैं
ऐसे सन्नाटे रोज कुछ बोल के जाते हैं
हर पहर यादों के दौर एक फेर लगाते हैं ।।
सर्द रात में रुकी दिल की धड़कन से
पैगाम तेरे कई शामों बाद आते हैं ।।
सुबोध
तेरे होने के एहसासों को भिगो के जाते हैं।
क्यों तन्हाई का सिरा है जिंदगी का दौर
जब दिन और रात तेरे नाम से आते हैं ।।
ऐसे सन्नाटे रोज कुछ बोल के जाते हैं
पास तेरे तेरा कोई अपना कहने को है
मेरे खाली कमरे के किनारे पड़े कपड़े
वापस मेरे आने की बस आस लगाते हैं
ऐसे सन्नाटे रोज कुछ बोल के जाते हैं
हर पहर यादों के दौर एक फेर लगाते हैं ।।
सर्द रात में रुकी दिल की धड़कन से
पैगाम तेरे कई शामों बाद आते हैं ।।
सुबोध
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