Wednesday, May 15, 2019

विरह - The sting of love

विरह

हर पल तुमको पाना और खोना तुमको खुद से,
नैनों में तुम्हे बसाना और नैनों से नींदें खोना,
रात दिन तुम्हें निहारना, सराहना, याद करना,
तुम्हारी बातों पे हसना और कभी आंसू बहाना।

दिन का रात में बदलना और रात का दिन में,
इन दोनों का अस्तित्व तुम्हारे प्रेम में खोना,
तुम्हारे साथ के दिवास्वप्न प्रतिपल संजोना,
और भूल जाना दिवास्वप्नों का भंगुर होना।

अपने मैं को खोना और खोना खुद का होना,
रोकना क़दमों को और फिर रुक के चलना,
राह के कंटकों से नित पुष्प हार पिरोना,
धारण कर इन हारों को इठलाना, मुस्कुराना।

काल के ग्रास पे कभी, ये आज भी चढ़ जाएगा,
मेरा होना, मेरा साया बस धूल सा रह जाएगा,
बचेगी बस मेरी लगन, मेरी छुधा चारों तरफ,
विरह में जल के कहीं कोई प्रभु सा हो जाएगा ।

सुबोध
Sep 2014

1 comment:

Anonymous said...

Mesmerizing