आशा और निराशा के बीच खड़ी
एक छाव सी तुम,
अपने पल्लू से निराशा की तपन को रोके, मेरे सिहरते हुए एहसासों को अपनी गोद में समेटे,
मेरे घर आने के पलों को समेटने आंगन में खड़ी तुम,
और एक शब्द में तुम्हे ढूंढता मेरा अस्तित्व, पर तुम मां हो या मां शब्द तुमसे बना है ? --- सुबोध